Translate

मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

आँख भर आसमां



इक  मुकम्मल  जहां  चाहिए
आँख - भर   आसमां  चाहिए

घर   जलाती  हुई   भीड़    से
साफ़-सुथरा     बयां   चाहिए

हसरतों  की  ज़मीं  पर  कहीं
दर्द    को    आशियां  चाहिए

बेहिसी  के   अंधेरों  में   अब
आह  की  बिजलियाँ  चाहिए

लो  बहार  आ  गई  दर्द   पर
चार-छह  तितलियाँ  चाहिए

सरज़मीं -ए- महावीर     पर
सब्र    का     इम्तेहां  चाहिए

शाह-ए-हिन्दोस्तां  क़ौम को
जिंदगी   की   अमां   चाहिए

आप  दे  दें   हमें   भी   सज़ा
जुर्म कुछ  तो  हुआ  चाहिए।

                          (2002, 9 दिस .)

                    - सुरेश स्वप्निल


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें